ईशनिंदा: जानिए कई देशो में मौत की सजा क्यों, भारत का कानून क्या कहता है?

Law On Blasphemy Cases: ईशनिंदा एक शब्द है जिसका उपयोग किसी धर्म, देवता या धार्मिक ग्रंथ के प्रति अपमानजनक या अपवित्र टिप्पणी या कृत्य का वर्णन करने के लिए किया जाता है। ईशनिंदा का एक नया रूप आज सोशल मीडिया और इंटरनेट पर उभरा है।

इसमें लोग धार्मिक विषयों पर अपशब्द कहते हैं या ऐसे किसी भी कार्य को करते हैं जो भगवान की निंदा को संकेतित करता हो। इसमें शब्दों के साथ-साथ वीडियो और तस्वीरों का भी उपयोग होता है। यहां तक कि कार्टून भी भगवान के खिलाफ हो सकते है।

Law On Blasphemy Cases

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ईशनिंदा के मुद्दे पर कई देशों में कानून

ईशनिंदा एक जटिल मुद्दा है जिसके बारे में कई अलग-अलग राय हैं। यह किसी धर्म या उसके अनुयायियों के लिए अपमानजनक या अपमानजनक माना जाता है। मुस्लिम-बहुल देशों में ईशनिंदा के खिलाफ कानून है। पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोप में लोगों को मारने की कई घटनाएं हुई हैं।

ऐसे लोग कानून तक पहुंचने से पहले ही भीड़ के गुस्से का शिकार हो जाते हैं। ईशनिंदा पर सबसे पहले ब्रिटेन ने साल 1860 में कानून बनाया था जिसे 1927 में संशोधित किया गया था। बाद में मुस्लिम देशों ने इस मुद्दे को लेकर कट्टर रुख अपनाया।

दुनियाभर में ईशनिंदा पर स्थिति

  • साल 1986 में पाकिस्तान में ईशनिंदा के दोषी को सजा-ए-मौत या उम्रकैद की सजा का प्रावधान बना। यह एक महत्वपूर्ण कदम था जो देश में धार्मिक अहंकार को रोकने का प्रयास था।
  • सऊदी अरब में भी ईशनिंदा के लिए शरिया के तहत मौत की सजा है। यहां तक कि नास्तिकता के आरोप में भी मौत की सजा हो सकती है।
  • ईरान में धर्म का अपमान करने पर मौत की सजा दी जाती है जो धार्मिक भावनाओं को समझाने और समाप्त करने के लिए एक तरह की डरावनी संदेश है।
  • अफगानिस्तान में भी ईशनिंदा पर फांसी या पत्थरों से मारने की सजा है जो एक और धार्मिक अपमान के खिलाफ कठोर कार्रवाई का प्रतीक है।
  • मिस्र समेत कई अन्य देशों में भी ईशनिंदा पर उम्रकैद या मौत की सजा है जो धार्मिक सहिष्णुता और सबलता की दृष्टि से चिंताजनक है।
  • इंडोनेशिया में एक महिला ने मस्जिद में पालतू कुत्ता ले जाने का प्रयास किया जिसका समाज में धार्मिक महत्व है। उसे इसके लिए मौत की सजा दी गई जो धार्मिक अपमान के खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रतीक है।

भारत में ईशनिंदा कानून

भारत में ईशनिंदा से जुड़ा कोई कानून नहीं है। हालांकि कई बार इसे बनाने की मांग उठी है। भारत एक बहु-धार्मिक देश है जहाँ सभी धर्मों को समान रूप से सम्मान दिया जाता है। भारत का संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्रदान करता है जोकि धर्म पर टिप्पणी का अधिकार भी शामिल करता है।

कुछ लोग तर्क देते हैं कि ईशनिंदा कानून धार्मिक भावनाओं की रक्षा के लिए आवश्यक है। ये सामाजिक सद्भाव बनाए रखने में मदद करेगा। कई लोग तर्क देते हैं कि ईशनिंदा कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। वे यह भी कहते हैं कि इसका इस्तेमाल अल्पसंख्यक समुदायों को दबाने के लिए किया जा सकता है।

ईशनिंदा के कानूनों की आलोचना कई लोगों द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में की जाती है। समर्थक इन कानूनों का बचाव धार्मिक भावनाओं की रक्षा करने के साधन के रूप में करते हैं। ईशनिंदा का मुद्दा बहस का विषय बना हुआ है।

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