Uttarakhand UCC Bill: शादी और तलाक का रजिस्ट्रेशन अब अनिवार्य, जानिए UCC के नए नियम!

6 फरवरी, उत्तराखंड विधानसभा के लिए एक ऐतिहासिक दिन के रूप में दर्ज हुआ, जब यहां यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पर पहली बार चर्चा की गई। यह पहल स्वतंत्र भारत में अपनी तरह की पहली घटना है, जिसमें एक राज्य ने समान नागरिक संहिता की दिशा में कदम बढ़ाया है। इस संहिता के माध्यम से विवाह, तलाक, और उत्तराधिकार जैसे निजी मामलों में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू करने का प्रस्ताव है।

Uttarakhand UCC Bill: शादी और तलाक का रजिस्ट्रेशन अब अनिवार्य, जानिए UCC के नए नियम!
Uttarakhand UCC Bill: शादी और तलाक का रजिस्ट्रेशन अब अनिवार्य, जानिए UCC के नए नियम!

यूसीसी बिल 2024 के मुख्य प्रावधान

Uttarakhand UCC Bill 2024 में कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं, जिनका उद्देश्य समाज में एकरूपता और न्याय सुनिश्चित करना है। इस बिल के अनुसार, सभी विवाह और तलाक का पंजीकरण अब अनिवार्य होगा। यह प्रावधान उन जोड़ों के लिए भी लागू होगा जो लिव इन रिलेशनशिप में हैं। इसके उल्लंघन पर 6 महीने तक की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा, एक जीवित पत्नी या पति के रहते हुए दूसरी शादी करने को भी गैर-कानूनी घोषित किया गया है।

UCC के तहत शादी और तलाक के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य बनाया गया है। इसके अलावा, तलाक के लिए एक साल की प्रतीक्षा अवधि भी होगी।

संवैधानिक आधार और राजनीतिक संकल्पना

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में यूनिफॉर्म सिविल कोड के लागू करने की बात कही गई है, जिसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपनी स्थापना के समय से ही एक मुख्य उद्देश्य के रूप में अपनाया है। इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए, उत्तराखंड सरकार ने यूसीसी बिल 2024 का मसौदा(Contract) तैयार किया और विधानसभा में पेश किया। इस कदम को सामाजिक समरसता और लैंगिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में देखा जा रहा है। इसके लागू होने से, विविध धार्मिक समुदायों के लिए अलग-अलग निजी कानूनों की जगह एक समान कानूनी प्रणाली स्थापित होगी, जो सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करेगी।

विवाह और तलाक के नियम

UCC बिल के अनुसार, विवाह के लिए पुरुष की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और महिला की न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है। यह विवाह से संबंधित नियमों को अधिक स्पष्ट और समान बनाता है, साथ ही समाज में विवाह संबंधी अव्यवस्थाओं और दुरुपयोगों को रोकने का प्रयास करता है। तलाक के मामले में भी, बिल दोनों पक्षों को समान अधिकार प्रदान करता है, जिससे लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलता है।

UCC के कुछ महत्वपूर्ण नियम

  • विवाह के 30 दिनों के भीतर पंजीकरण कराना होगा।
  • तलाक के लिए आवेदन करने से पहले एक साल तक अलग रहना होगा।
  • तलाक के लिए न्यायालय में याचिका दायर करनी होगी।
  • पति-पत्नी के बीच संपत्ति का विभाजन समान होगा।
  • बच्चों का पालन-पोषण दोनों माता-पिता की जिम्मेदारी होगी।

UCC के समर्थकों का कहना है कि यह बिल राज्य में समानता और न्याय को बढ़ावा देगा। वे यह भी कहते हैं कि यह बिल महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करेगा।

पंजीकरण प्रक्रिया और सब-रजिस्ट्रार की भूमिका

बिल में प्रस्तावित पंजीकरण प्रक्रिया सरल और सुलभ है। विवाह और तलाक के पंजीकरण के लिए सब-रजिस्ट्रार की नियुक्ति सुनिश्चित करने का प्रावधान इसे प्रभावी बनाता है। यह व्यवस्था नागरिकों को अपने वैवाहिक स्थिति को कानूनी रूप से दर्ज कराने में सहायता प्रदान करेगी, जिससे विवादों के समाधान में आसानी होगी। सब-रजिस्ट्रार कार्यालय न केवल विवाह और तलाक के मामलों में पंजीकरण प्रक्रिया को संभालेगा, बल्कि उत्तराधिकार और अन्य नागरिक मामलों में भी सहायता करेगा।

अपील और न्यायिक प्रक्रिया

यदि किसी व्यक्ति को सब-रजिस्ट्रार के निर्णय से असंतोष होता है, तो उसके पास निबंधक या महानिबंधक के समक्ष अपील करने का अधिकार होगा। यह प्रक्रिया नागरिकों को उनके अधिकारों के प्रति एक अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करती है और सुनिश्चित करती है कि पंजीकरण प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी हो।

सामाजिक और न्यायिक प्रभाव

यूनिफॉर्म सिविल कोड का कार्यान्वयन भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने की क्षमता रखता है। यह विभिन्न धर्मों और समुदायों के बीच न्यायिक समानता स्थापित करते हुए, राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देगा। इससे सामाजिक न्याय, लैंगिक समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सिद्धांतों को मजबूती मिलेगी।

निष्कर्ष

उत्तराखंड का यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल 2024 न केवल राज्य में, बल्कि पूरे भारत में एक नई विधायिका और सामाजिक सोच की दिशा में एक कदम है। यह बिल व्यक्तिगत अधिकारों और समाजिक न्याय के मूल्यों को सुदृढ़ करता है, जो एक आधुनिक, प्रगतिशील और एकीकृत समाज की नींव रखता है। इस पहल के सफल कार्यान्वयन से न केवल उत्तराखंड में, बल्कि पूरे देश में एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिससे भारतीय न्यायिक और सामाजिक परिदृश्य में एक नया अध्याय जोड़ा जाएगा।

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