“तुर्रम खान: वीर क्रांतिकारी या अंग्रेजों के लिए खतरा? जानिए उनका इतिहास!”, संसद में क्यों बैन है ये नाम ?

जब भी हम किसी के खिलाफ आलोचना करते हैं तो कहते हैं, “खुद को तुर्रम खान समझते हो क्या?” यह कहावत भारतीय समाज में काफी प्रचलित है। लेकिन बहुत से लोग इसका असली मतलब नहीं जानते हैं और इसे केवल एक ताना या आलोचना के रूप में समझते हैं। इस लेख में, हम इस कहावत की मूल उत्पत्ति और अर्थ को समझेंगे, साथ ही यह भी जानेंगे कि तुर्रम खान कौन थे और उनका नाम संसद में लेना क्यों है।

"तुर्रम खान: वीर क्रांतिकारी या अंग्रेजों के लिए खतरा? जानिए उनका इतिहास!", संसद में क्यों बैन है ये नाम ?
“तुर्रम खान: वीर क्रांतिकारी या अंग्रेजों के लिए खतरा? जानिए उनका इतिहास!”, संसद में क्यों बैन है ये नाम ?

तुर्रम खान ने अंग्रेजों पर किया था हमला

रिपोर्ट्स के अनुसार, तुर्रम खान ने ब्रिटिश रेजीडेंसी पर हमला करने के लिए लगभग 6000 लोगों को एकत्र किया और अपनी एक फौज तैयार की थी। इसका कारण था कि अंग्रेजों ने क्रांतिकारी चीदा खान को पकड़ लिया था और उन्हें छुड़ाने के लिए तुर्रम खान ने यह सेना तैयार की थी।

बाद में, तुर्रम खान ने अंग्रेजों पर हमला किया, और उनके खिलाफ भी बड़ी सेना का मुकाबला किया गया। अंग्रेजों ने उन्हें कई बार पकड़ने की कोशिश की और उन पर इनाम भी रखा गया था।

कहावत का इतिहास और महत्व

कहावत “खुद को तुर्रम खान समझते हो क्या?” का इतिहास बहुत प्राचीन है। यह भारतीय संस्कृति में सामाजिक और राजनीतिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। इस कहावत का मतलब होता है कि एक व्यक्ति अपने आप को बड़ा मानने लगता है, जबकि उसकी वास्तविक अहमियत कुछ भी नहीं होती। यह कहावत आम तौर पर अहंकार और अभिमान के खिलाफ उपयोग की जाती है।

कौन थे तुर्रम खान?

पहली बात तो यह है कि तुर्रम खान का असली नाम था तुर्रेबाज खान। वे हैदराबाद के निवासी थे और 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उस समय जब पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की आग लगी थी, हैदराबाद में निजाम अंग्रेजों के साथ मिलकर बैठे थे। लेकिन तुर्रेबाज खान को यह स्थिति स्वीकार्य नहीं थी। वे अंग्रेजों के दखलंदाजी के खिलाफ थे और हैदराबाद को भी इस लड़ाई में शामिल होने की प्रेरणा देना चाहते थे। इसी जुनून ने उन्हें एक क्रांतिकारी बना दिया।

क्या किया तुर्रेबाज खान ने?

तुर्रेबाज खान ने सोचा कि अंग्रेजों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम उठाना चाहिए। उन्होंने लगभग 6000 लोगों को एकत्रित किया और एक हमला प्लान किया। उनका उद्देश्य था कि उन दिनों जेल में बंद क्रांतिकारी चीदा खान को बचा लें और अंग्रेजों के खिलाफ जवाब दें। हालांकि, इस बड़े मिशन को गुप्त रखना कठिन था। किसी ने अंग्रेजों को इसकी जानकारी दे दी और वे तत्परता से उत्तरदायी की तैयारी करने लगे। तुर्रेबाज खान और उनके साथियों ने बहादुरी से लड़ा, लेकिन अंग्रेजों की बड़ी सेना के सामने उनकी टिकना मुश्किल थी। वे हार नहीं माने, लेकिन उन्हें पीछे हटना पड़ा।

शहर के बीच में लटका दिया गया था शरीर

अंग्रेजों ने प्रयास किया, लेकिन तुर्रम खान को बाज़ नहीं आया। थोड़ी देर बाद, तालुकदार मिर्जा कुर्बान अली बेग ने तूपरण के जंगलों में उन्हें पकड़ लिया। तुर्रम खान को फिर कैद में डाला गया और फिर उन्हें गोलियों से मार दिया गया। उनके शव को भी शहर के केंद्र में लटका दिया गया ताकि आगे होने वाले विद्रोही डरें और उन्हें रोका जा सके।

तुर्रम खान: संसद में बैन

तुर्रम खान का नाम भारतीय संसद में ‘बैन’ है। लोकसभा सचिवालय ने 2022 में संसद की कार्यवाही के दौरान इस्तेमाल नहीं किए जाने वाले शब्दों की लिस्ट जारी की थी, जिसमें ‘तुर्रम खां’ शब्द भी था। इसके साथ साथ कई अन्य शब्द भी संसद में बैन है जैसे की – शकुनि, दलाल आदि

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