सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों को लेकर एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। तीन न्यायाधीशों की पीठ ने, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने की, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत बहू को उसके पति के माता-पिता के घर में रहने का अधिकार प्रदान किया है। यह निर्णय समाज में बहुओं के स्थान और उनके अधिकारों को नई पहचान देने का कार्य करेगा।
बहु के पक्ष में लिया गया फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा की शिकार पत्नी को न केवल पति की अर्जित की हुई संपत्ति में, बल्कि पारिवारिक साझा संपत्ति और रिहायशी घर में भी रहने का कानूनी अधिकार होगा। इस फैसले ने तरुण बत्रा मामले में पहले दिए गए दो न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को पलट दिया है, जिसमें कहा गया था कि बेटियां अपने पति के माता-पिता की संपत्ति में नहीं रह सकतीं।
पीठ के निर्णय की गहराई
सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए 6-7 महत्वपूर्ण सवालों के जवाब दिए। पीठ ने घरेलू हिंसा कानून 2005 का हवाला देते हुए न केवल पति की व्यक्तिगत संपत्ति पर बहू के अधिकार को मान्यता दी, बल्कि साझा संपत्ति में भी उसके अधिकार को स्वीकार किया।
महिलाओं को मिला सम्मान
यह फैसला भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों के प्रति एक प्रगतिशील कदम है। इससे न केवल घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को सुरक्षा और सम्मान मिलेगा, बल्कि यह उन्हें आर्थिक रूप से भी मज़बूती प्रदान करेगा। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय समाज में लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।
यह फैसला महिलाओं के लिए एक बड़ी जीत है। यह फैसला महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने में मदद करेगा और उन्हें अपने पति के माता-पिता के घर में रहने का अधिकार देगा।
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