Supreme Court Decision : आजकल लोन लेना आम बात हो गई है। घर, गाड़ी, शिक्षा, या कोई भी जरूरत हो, लोग लोन लेकर उसे पूरा करते हैं। लेकिन कई बार लोग लोन चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं। ऐसे में बैंक या फाइनेंस कंपनी उनके खिलाफ कार्रवाई करते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने लोन के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। यह फैसला उन सभी लोगों के लिए जानना जरूरी है जो लोन लेने की योजना बना रहे हैं या जिन्होंने पहले से ही लोन लिया हुआ है।
क्या आप जानते हैं कि अगर आप अपनी कार लोन की किस्त समय पर नहीं चुकाते हैं तो आपकी कार का मालिक कौन होगा? सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि आप कार लोन की किस्तें नहीं चुकाते हैं तो कार का मालिक आपका लोन फाइनेंसर होगा। यह फैसला उन सभी लोगों के लिए जानना जरूरी है जिन्होंने कार लोन लिया हुआ है या जो कार लोन लेने की योजना बना रहे हैं।
देश की सर्वोच्च अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि जब तक आप लोन की किस्तें पूरी तरह से नहीं चुका देते, तब तक वाहन का मालिक केवल फाइनेंसर ही रहेगा।
क्या है मामला?
राजेश, अम्बेडकर नगर के रहने वाले, ने 2013 में महिंद्रा कार फाइनेंस पर खरीदी थी। उन्होंने 1 लाख रुपये का डाउनपेमेंट दिया था और बाकी लोन लिया था। लोन की किस्त 12,531 रुपये प्रति माह थी। राजेश ने 7 महीने तक EMI भरी, लेकिन इसके बाद उन्होंने कोई किस्त नहीं दी। फाइनेंसिंग कंपनी ने 5 महीने तक इंतजार किया, लेकिन किश्तें न मिलने पर उन्होंने कार उठा ली।
यह घटना उन सभी लोगों के लिए एक सबक है जो लोन लेने की योजना बना रहे हैं। लोन लेने से पहले अपनी आर्थिक स्थिति का आकलन करना जरूरी है। यदि आपको लगता है कि आप लोन नहीं चुका पाएंगे तो लोन न लें।यह घटना फाइनेंसिंग कंपनियों के लिए भी एक संकेत है। उन्हें लोन देने से पहले ग्राहक की आर्थिक स्थिति की जांच करनी चाहिए। यह घटना लोन लेने और देने दोनों पक्षों के लिए महत्वपूर्ण है। यह दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाता है।
कंज्यूमर कोर्ट पहुंचा मामला
एक ग्राहक ने जब इस बारे में जानकारी प्राप्त की, तो उसने उपभोक्ता अदालत (Consumer Court) में मामला दाखिल किया। मामले की सुनवाई करते हुए कंज्यूमर कोर्ट ने फाइनेंसर पर 2 लाख 23 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। न्यायाधीशों ने कहा कि फाइनेंसर ने बिना पूर्व-सूचना के ग्राहक की गाड़ी उठा ली। उपभोक्ता अदालत ने अपने फैसले में यह भी दर्शाया कि फाइनेंसर ने ग्राहक को किस्त भरने के लिए पूरा मौका नहीं दिया।
सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला
उसके बाद फाइनेंसर ने सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह निर्णय दिया कि गाड़ी को खरीदने वाला व्यक्ति डिफॉल्टर था, जिसने स्वयं स्वीकार किया कि वह केवल 7 किस्तों का ही भुगतान कर पाया था। सुप्रीम कोर्ट ने उसे 12 महीने के बाद ही गाड़ी को कब्जे में लिया। कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग (National Consumer Commission) के द्वारा लगाए गए जुर्माने को रद्द कर दिया। तथापि, ग्राहक को नोटिस नहीं देने के कारण फाइनेंसर को 15000 रुपये का जुर्माना देना होगा।
लोन डिफॉल्टर्स को मिलेगा ये मौका
ऋण न चुकाने के एक और मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। उस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को उजागर किया कि किसी भी ऋण खाते को फ्रॉड के रूप में घोषित करने से पहले ऋण लेने वाले को बैंकों की दिशा में अपना पक्ष रखने का एक मौका दिया जाना चाहिए। यहां तक कि इस कदम से संबंधित व्यक्ति के सिबिल स्कोर पर भी बुरा असर पड़ता है। मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि बैंक कर्जदार को बिना अपना पक्ष रखने का मौका दिए एकतरफा खाते को फ्रॉड नहीं घोषित कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने की ये टिप्पणी
न्यायालय ने कहा कि किसी ऋण खाते को धोखाधड़ी घोषित करने से पहले कर्जदार को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए। न्यायिक पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि ऋण खाते को धोखाधड़ी घोषित करने के लिए प्राथमिकी दर्ज कराने की आवश्यकता नहीं है। न्यायालय ने ऋण खाते को धोखाधड़ी घोषित करने को कर्जदार को ब्लैकलिस्ट करने के समान माना। यह निर्णय दो उच्च न्यायालयों के फैसलों पर विचार करने के बाद दिया गया।
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