शिशु मृत्यु दर: भारत में 60% नवजात शिशुओं की मौत इस वज़ह से हो रही है,जानिए कैसे करें बचाव

भारत में शिशु मृत्यु दर (IMR) एक गंभीर चिंता का विषय है। 2020 में, भारत में IMR 35 प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर थी, जिसका अर्थ है कि भारत में हर 1,000 जीवित जन्मों में से 35 नवजात शिशुओं की मृत्यु हो जाती है। इंपीरियल कॉलेज लंदन, यूके के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में खुलासा किया है कि भारतीय शिशुओं की 60 प्रतिशत मौतें मस्तिष्क में चोट लगने के कारण होती हैं। इस आलेख में, हम इस विषय को विस्तार से समझेंगे और इससे निपटने के उपायों पर भी प्रकाश डालेंगे।

शिशु मृत्यु दर: भारत में 60% नवजात शिशुओं की मौत इस वज़ह से हो रही है,जानिए कैसे करें बचाव
शिशु मृत्यु दर: भारत में 60% नवजात शिशुओं की मौत इस वज़ह से हो रही है,जानिए कैसे करें बचाव

ऑक्सीजन की कमी होना

अध्ययन के अनुसार, एक प्रमुख कारण है हाइपोक्सिक-इस्केमिक एन्सेफैलोपैथी (एचआईई)। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब शिशु को जन्म से पहले या जन्म के तुरंत बाद पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। इस ऑक्सीजन की कमी से मस्तिष्क के ऊतकों को नुकसान पहुंचता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएं उत्पन्न होती हैं।

चोट का पता लगाने में नई तकनीक

इसी अध्ययन में एक आशा की किरण भी सामने आई है। शोधकर्ताओं ने बताया कि एक सिंपल ब्लड टेस्ट के जरिए इस तरह की चोटों का पता लगाना संभव है। यह परीक्षण न केवल चोट का पता लगा सकता है बल्कि इसके कारण का भी संकेत दे सकता है, जिससे इलाज में मदद मिलती है।

भारत में इस समस्या की गंभीरता

भारत में एचआईई का बोझ विश्वव्यापी स्तर पर सबसे अधिक है। इस स्थिति से संबंधित सभी मौतों में से लगभग 60 प्रतिशत मौतें भारत में होती हैं। यह एक चिंताजनक आंकड़ा है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

नवजात शिशुओं की मृत्यु दर को कम करना एक सामूहिक प्रयास है। सरकार, स्वास्थ्य सेवा प्रदाता, माता-पिता और देखभाल करने वालों को सभी को मिलकर काम करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी नवजात शिशुओं को स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीने का मौका मिले।

उपचार और निवारण

शोधकर्ताओं का मानना है कि गर्भावस्था के दौरान और जन्म के समय उचित देखभाल और सावधानी बरतने से इस समस्या को कम किया जा सकता है। खराब पोषण और संक्रमण से बचाव, साथ ही साथ प्रसव के दौरान सही तकनीकों का उपयोग, इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।

इस अध्ययन से उजागर हुई जानकारी न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में शिशुओं के स्वास्थ्य के लिए बेहतर परिणामों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस प्रकार के शोध और अध्ययन हमें न केवल समस्याओं की पहचान में मदद करते हैं बल्कि उनके समाधान में भी सहायक होते हैं। भारत को इस समस्या के निवारण के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि हर शिशु को स्वस्थ जीवन की शुरुआत मिले।

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