हाल ही में, 16 फरवरी को, दिल्ली हाईकोर्ट ने गोद लेने के नियमों में महत्वपूर्ण बदलाव को बरकरार रखा। अदालत ने स्पष्ट किया कि बच्चों को गोद लेने का अधिकार किसी का मौलिक अधिकार नहीं है। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब गोद लेने के संशोधित नियमों को कानूनी चुनौती दी जा रही थी। संशोधन के अनुसार, दो या दो से अधिक बच्चों वाले माता-पिता को “सामान्य बच्चा” गोद लेने से रोका गया है।
क्या कहा कोर्ट ने
अदालत ने यह भी कहा कि माता-पिता, जिनके पहले से दो बच्चे हैं, वे विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को गोद ले सकते हैं, लेकिन बिना विकलांगता वाले बच्चों को नहीं। इस फैसले का उद्देश्य विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को गोद लेने में प्राथमिकता देना है।
“सामान्य बच्चा” को ऐसे बच्चे के रूप में परिभाषित किया गया है, जो विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम के अनुसार किसी भी विकलांगता से पीड़ित नहीं है। नए नियमों के तहत, दो या दो से अधिक बच्चों वाले माता-पिता केवल विशेष आवश्यकता वाले या मुश्किल स्थिति में बच्चों को गोद ले सकते हैं।
केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) ने इन बदलावों को लागू करने का निर्णय लिया, यह बदलाव पहले से लंबित गोद लेने के आवेदनों पर भी लागू किया जाएगा।
अपने फ़ैसले में क्या कहा कोर्ट ने
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने फैसला सुनाते हुए कहा, “गोद लेने के अधिकार को न तो मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जा सकता है और न ही इसे भावी दत्तक माता-पिता को अपनी पसंद की मांग करने का अधिकार दिया जा सकता है।”
इस फैसले ने नियमों के पूर्वव्यापी आवेदन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया और परिवर्तनों को प्रक्रियात्मक माना गया। यह मामला और इसका फैसला गोद लेने की प्रक्रिया और उससे जुड़े नियमों में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है, जो विशेष रूप से विकलांगता वाले बच्चों की जरूरतों को प्राथमिकता देने के लिए किया गया है।
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