लिव इन रिलेशन में रहने वाली शादीशुदा महिला को हाईकोर्ट से झटका, लगाया जुर्माना

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि एक शादीशुदा महिला, जो किसी अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही है, को संरक्षण प्रदान करने की मांग नहीं की जा सकती। इस निर्णय से महिलाओं को एक बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने इसे अवैध संबंधों को वैधता प्रदान करने की कोशिश के रूप में देखा।

लिव इन रिलेशन में रहने वाली शादीशुदा महिला को हाईकोर्ट से झटका, लगाया जुर्माना
लिव इन रिलेशन में रहने वाली शादीशुदा महिला को हाईकोर्ट से झटका, लगाया जुर्माना

क्या था पूरा मामला ?

यह मामला एक महिला का था जो अपने पति को छोड़कर एक अन्य पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशन में रह रही थी। महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सुरक्षा की मांग की थी।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि लिव-इन रिलेशन भारतीय संस्कृति और सामाजिक मूल्यों के विपरीत है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि महिला पहले से ही शादीशुदा है, इसलिए उसे किसी अन्य पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशन में रहने का अधिकार नहीं है।

इलाहबाद कोर्ट का फैसला

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय समाज लिव-इन रिलेशनशिप को स्वीकार नहीं करता, और इस तरह के संबंध देश की सामाजिक नैतिकता के विपरीत हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह अवैधानिकता को स्वीकृति नहीं दे सकती।हाईकोर्ट ने महिला को संरक्षण देने से इनकार करते हुए 5,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है। यह निर्णय न्यायमूर्ति डॉ. केजे ठाकर और न्यायमूर्ति अजय त्यागी की खंडपीठ ने सुनीता देवी की याचिका पर दिया।

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महिला ने अपने पति पर लगाया आरोप

याचिकाकर्ता, सुनीता देवी ने अपने पति पर गंभीर आरोप लगाए, जिसमें उन्होंने कहा कि पति उन्हें अपने दोस्तों से संबंध बनाने के लिए कहता है। इस कारण से उन्होंने अपने पति का घर छोड़ दिया और दूसरे पुरुष के साथ रहने लगीं। उन्होंने पुलिस और पति पर परेशान और धमकाने के आरोप भी लगाए। हालांकि, उन्होंने पुलिस में इसकी शिकायत दर्ज नहीं करवाई थी।

कोर्ट ने महिला को क्या सलाह दी ?

कोर्ट ने सुनीता देवी को सलाह दी कि वह नियमानुसार पुलिस में शिकायत दर्ज करवा सकती हैं। इस निर्णय के साथ, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए संरक्षण प्रदान करना संभव नहीं है, खासकर जब यह विवाहित जीवन के खिलाफ जाता हो।

यह निर्णय भारतीय समाज में लिव-इन रिलेशनशिप के प्रति व्याप्त विचारों और सामाजिक नैतिकता के मानदंडों को उजागर करता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि विवाह और पारिवारिक संबंधों के मामलों में कानूनी संरक्षण की सीमाएं होती हैं, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों को भी सामाजिक नैतिकता के पैमाने पर तौला जाता है।

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