धारा 138 के तहत चेक बाउंस! इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, ईमेल और व्हाट्सएप से नोटिस भेजना मान्य

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि चेक बाउंस(check bounce) के मामलों में ईमेल या व्हाट्सएप के माध्यम से भेजा गया डिमांड नोटिस वैध है। यह फैसला उन लोगों के लिए बड़ी राहत है जो चेक बाउंस के मामलों में न्यायिक सहायता प्राप्त करना चाहते हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि ईमेल या व्हाट्सएप के माध्यम से भेजे गए डिमांड नोटिस को वैध माना जाएगा। यह निर्णय न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ द्वारा निकाला गया, जब उन्होंने परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act) 1881 की धारा 138 के तहत दर्ज एक मामले में सुनवाई की।

धारा 138 के तहत चेक बाउंस! इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, ईमेल और व्हाट्सएप से नोटिस भेजना मान्य
धारा 138 के तहत चेक बाउंस! इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, ईमेल और व्हाट्सएप से नोटिस भेजना मान्य

ईमेल और व्हाट्सएप से नोटिस भेजना मान्य

पीठ ने यह स्पष्ट किया कि यदि ईमेल या व्हाट्सएप के माध्यम से भेजा गया नोटिस आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 13 की आवश्यकताओं को पूरा करता है, तो उसे वैध माना जाएगा। इसका मतलब है कि यदि नोटिस सही ढंग से भेजा गया है और उसे प्राप्तकर्ता तक पहुंचाया गया है, तो उसे भेजे जाने की तारीख को ही माना जाएगा।

क्या था पूरा मामला

इस मामले में, एक व्यक्ति ने चेक बाउंस होने के बाद चेक जारीकर्ता को ईमेल और व्हाट्सएप के माध्यम से नोटिस भेजा था। चेक जारीकर्ता ने तर्क दिया कि नोटिस वैध नहीं था क्योंकि यह पंजीकृत डाक द्वारा नहीं भेजा गया था।

मामले की जानकारी

इस मामले में, आवेदक के वकील ने यह तर्क दिया था कि चेक बाउंस होने के बाद भेजे गए कानूनी नोटिस को लेकर कुछ अनियमितता थीं। नोटिस चेक बाउंस होने के बाद 10 दिनों के अंदर भेजा गया था और शिकायत में नोटिस सेवा की निर्धारित तारीख का अभाव था। वकीलों ने सामान्य धारा अधिनियम, 1977 की धारा 27 के तहत 30 दिन की धारणा का हवाला दिया, जिससे सुझाव दिया जाता है कि शिकायत नोटिस के 45 दिन बाद दर्ज की जानी चाहिए।

हाईकोर्ट का निर्णय

हाईकोर्ट ने इस मामले में यह माना कि ईमेल या व्हाट्सएप (Email/Whatsapp notice valid) के जरिए भेजा गया नोटिस भी धारा 138 एनआई अधिनियम के तहत वैध है, हाईकोर्ट ने चेक जारीकर्ता के तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेजे गए नोटिस वैध हैं। न्यायालय ने यह भी कहा कि परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 में चेक जारीकर्ता पर नोटिस की तामील की तारीख का उल्लेख करने की कोई कानूनी आवश्यकता नहीं है।

निष्कर्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल चेक बाउंस के मामलों में, बल्कि समग्र रूप से कानूनी प्रक्रियाओं में डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह निर्णय न केवल प्रक्रियाओं को तेज करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कानूनी नोटिसेज अधिक कुशलता से और पारदर्शी तरीके से भेजे जा सकें। इससे न्याय प्रणाली में तकनीकी नवाचार के महत्व को भी रेखांकित किया जाता है।

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