MCpanchkula News: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वीकार किया है कि अविवाहित बेटियों को, उनकी धार्मिक पहचान या उम्र के बावजूद, अपने माता-पिता से घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act) के अंतर्गत भरण-पोषण पाने का अधिकार है। न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा ने नईमुल्लाह शेख और एक अन्य व्यक्ति द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज करते हुए कहा कि चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम, एक अविवाहित बेटी को गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है, उसकी उम्र चाहे जो भी हो।
क्या कहा कोर्ट ने
कोर्ट ने बताया कि जब अधिकारों से संबंधित प्रश्न उठते हैं, तो अदालतों को लागू होने वाले अन्य कानूनों की भी जांच करनी चाहिए। हालांकि, यदि मुद्दा केवल भरण-पोषण से संबंधित नहीं है, तो घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा-20 के अंतर्गत पीड़ित को विशिष्ट अधिकार मिलते हैं।
यह मामला तीन बेटियों के द्वारा दायर किया गया था, जिन्होंने अपने पिता और सौतेली माँ पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया था और डीवी अधिनियम के तहत भरण-पोषण की मांग की थी। ट्रायल कोर्ट ने अंतरिम भरण-पोषण का आदेश दिया था, जिसे अपीलकर्ताओं ने यह दलील देते हुए चुनौती दी थी कि बेटियां वयस्क और आर्थिक रूप से स्वतंत्र थीं।
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कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की। 10 जनवरी के फैसले में, कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि बेटियां बालिग होने के कारण भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकतीं।
कोर्ट ने जोर दिया कि डीवी अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं को अधिक प्रभावी सुरक्षा प्रदान करना है। अदालत ने कहा कि भरण-पोषण पाने का वास्तविक अधिकार अन्य कानूनों से भी प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन इसे पाने के लिए त्वरित और सरल प्रक्रियाएं Domestic Violence Act -2005 में उपलब्ध हैं।
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