कई बार, पारिवारिक विवादों या अन्य कारणों से, माता-पिता अपने बच्चों को पैतृक संपत्ति से बेदखल कर देते हैं। लेकिन क्या यह कानूनी रूप से सही है? क्या बेदखल होने के बाद भी बच्चों का पैतृक संपत्ति में कोई अधिकार रहता है? इस लेख में हम इस विषय पर चर्चा करेंगे और कानूनी प्रावधानों को समझेंगे।
एक खास प्रकार की संपत्ति भी होती है, जिसे ‘पैतृक संपत्ति’ कहा जाता है, और इस पर माता-पिता द्वारा बच्चों को बेदखल नहीं किया जा सकता है।
पैतृक संपत्ति क्या है?
पैतृक संपत्ति वह होती है जो व्यक्ति को उसके पूर्वजों से मिली होती है। इसके लिए जरूरी है कि संपत्ति कम से कम चार पीढ़ियों से परिवार में बनी रही हो और इस दौरान कोई बंटवारा न हुआ हो। पैतृक संपत्ति पर बच्चों, चाहे वे पुत्र हों या पुत्री, दोनों का समान अधिकार होता है।
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पैतृक संपत्ति पर हक कैसे मिलता है?
पैतृक संपत्ति पर हक आपके पूर्वजों के उत्तराधिकारियों के बीच बराबरी से बंटता है। इसका मतलब है कि यदि आपके पिता को उनके पिता से कुछ संपत्ति मिली है, तो वह संपत्ति आपके और आपके भाई-बहनों के बीच बराबरी से बंटेगी।
बच्चों का अधिकार
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, बच्चों को पैतृक संपत्ति में जन्मजात अधिकार प्राप्त होता है। यह अधिकार लिंग पर आधारित नहीं होता, यानी बेटों और बेटियों दोनों का समान अधिकार होता है। माता-पिता द्वारा बेदखल किए जाने के बाद भी यह अधिकार बरकरार रहता है।
क्या कहता है कोर्ट ?
जब परिवार के सदस्यों के बीच पैतृक संपत्ति को लेकर विवाद होता है, तो इस समस्या का समाधान कोर्ट के माध्यम से किया जा सकता है। कोर्ट, मामले की परिस्थितियों और साक्ष्यों के आधार पर, निर्णय लेता है जो अक्सर बच्चों के पक्ष में होता है।
पैतृक संपत्ति और विरासत संपत्ति के बीच का अंतर
पैतृक संपत्ति वो होती है जो आपको आपके दादा-परदादा से मिलती है और जिसमें कोई बंटवारा नहीं हुआ हो। ये ऐसी संपत्ति है जिसमें आपका हक जन्म से ही होता है। दूसरी ओर, विरासत में मिली संपत्ति वो होती है जो आपको आपके माता-पिता या अन्य करीबी रिश्तेदारों से मिलती है। इसमें वो संपत्ति आती है जो उन्होंने आपके नाम की हो। पैतृक संपत्ति में सभी का बराबर हक होता है, लेकिन विरासती संपत्ति में वही हकदार होता है जिसके नाम पर संपत्ति की गई हो।
निष्कर्ष
पैतृक संपत्ति और उस पर हक का मुद्दा जटिल हो सकता है, लेकिन हिंदू उत्तराधिकार कानून ने इसे स्पष्ट कर दिया है कि संपत्ति पर सभी संतानों का समान अधिकार होता है। यदि कोई विवाद हो, तो कोर्ट के माध्यम से इसका समाधान खोजा जा सकता है, जो अक्सर न्यायसंगत और संतुलित होता है।
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