सूरदास जी को भक्ति मार्ग का सूर्य भी कहा जाता है, क्योंकि जिस प्रकार सूर्य अपने प्रकाश व ऊष्मा से संसार को जीवन प्रदान करता है उसी प्रकार महाकवि सूरदास जी ने भक्ति की रचनाओं तथा कविताओं से मनुष्यों में भक्ति भाव का संचार किया है।
जिस प्रकार राम भक्त कवियों में गोस्वामी तुलसीदास जी का एक मह्त्वपूर्ण स्थान है ठीक उसी प्रकार कृष्ण भक्त में सूरदास जी का एक अलग ही महत्वपूर्ण स्थान है। सूरदास जी जीवन भर कृष्ण भक्ति में लीन रहे यही कारण है की उन्होंने कभी भी शादी नहीं की।
आज हम अपने आर्टिकल के माध्यम से आपको वात्सल्य रस के सम्राट सूरदास का जीवन परिचय बताएंगे। अपने लेख के माध्यम से आज हम आपको उनकी सुप्रसिद्ध काव्य कृतियां तथा रचनाओं के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देंगे इसलिए हमारे लेख को पूरा पढ़ें।
अगर आप जीवन परिचय पढ़ने में रूचि रखते हैं तो आपको मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन परिचय भी पढ़ना चाहिए। इनका जीवन परिचय पढ़कर भी आपको बहुत ही आनंद आएगा।

सूरदास का जीवन परिचय
1478 ईस्वी में रुनकता नामक गांव में सूरदास जी का जन्म हुआ, हालाँकि बहुत से विद्वानों में अभी भी उनके जन्म के संबंधित विषय में अभी भी मतभेद बना हुआ है।
कुछ विद्वानों द्वारा उनका जन्मस्थान सीही नामक गांव में मानते हैं तो कुछ विद्वान रुनकता नामक गांव में मानते हैं लेकिन अधिकतर विद्वान मानते हैं की सूरदास जी का जन्म 1478 ईस्वी को रुनकता नामक गांव में हुआ था।
यह गांव वर्तमान में मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे पर बसा है। सूरदास जी के पिता का नाम रामदास सारस्वत था जो की एक सारस्वत ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे।
सूरदास जी ने अपने बचपन का अधिकांश भाग गऊघाट पर ही बिताया था। वहीं घाट पर उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य जी से हुई इनको उन्होंने बाद में अपना गुरु बना लिया।
सूरदास जी जन्म से ही अंधे थे लेकिन जिस प्रकार से उन्होंने अपने रचनाओं में श्री कृष्ण जी का आलोकिक वर्णन किया है, उससे कई विद्वान यह मैंने के लिए तैयार ही नहीं हैं की वह जन्म से ही अंधे थे उनका मानना है सूरदास जी बाद में किसी दुर्घटना वश अंधे हुए।
कहते हैं की सूरदास द्वारा रचित पदों से खुश होकर श्री वल्लभाचार्य जी ने उन्हें श्रीनाथ मंदिर का कार्यभार संभालने के लिए दिया और कृष्ण भक्ति की शिक्षा दी। इसके बाद ही सूरदास जी के द्वारा अमर कृति सूरसागर की रचना की गयी।
सूरदास का जीवन परिचय – संक्षिप्त
वास्तविक नाम | मदन मोहन सारस्वत |
प्रसिद्ध नाम | सूरदास जी |
जन्म-तिथि | सन 1478 ईसवी |
जन्म-स्थान | ग्राम रुनकता |
पिता | श्री रामदास सारस्वत |
माता | श्रीमती जमुनादास |
गुरु | आचार्य वल्लभाचार्य जी |
निवास-स्थान | श्रीनाथ मंदिर |
जन्म काल | भक्ति काल |
भक्ति शाखा | कृष्ण भक्ति |
साहित्यिक योगदान | कृष्ण की बाल लीलाओं का मनोहारी चित्रण |
ब्रह्म का स्वरूप | सगुण |
प्रमुख रचनाएँ | सूरसागर, सूर सरावली, साहित्य लहरी |
अन्य रचनाएं | पद-संग्रह, सूर पच्चीसी, नल दमयंती, नाग लीला, गोवर्धन लीला |
भाषा | ब्रज भाषा |
शैली | गीति मुक्तक शैली |
रस | वात्सल्य व श्रंगार |
मृत्यु-तिथि | सन 1583 ईस्वी |
मृत्यु-स्थान | पारसौली, मथुरा |
सूरदास जी की प्रमुख कृतियाँ एवं रचनाएँ
भक्ति काल में सूरदास जी के द्वारा श्री कृष्ण की बाल रचनाओं की व्याख्या की गयी है, इन रचनाओं के आधार पर कोई भी व्यक्ति सूरदास जी के जन्म से ही अंधे होने की विषय पर सवाल उठा सकता है। सूरदास जी के द्वारा रचित प्रमुख रचनाएं निम्लिखित हैं :-
- सूरसागर (Sursagar):- सूरदास जी के द्वारा भक्ति काल में श्री कृष्ण भक्ति का सूरसागर में आलोकिक वर्णन किया गया है। सूरसागर एक गीतिकाव्य है जो श्रीमद्भागवत ग्रंथ से प्रभावित है।
- इस काव्य में मूलतः कृष्ण भगवान की बाल लीलाओं, गोपियों संग प्रेम, गोपियों संग विरह, उद्धव तथा गोपी संग संवाद का एक आलोकिक वर्णन मिलता है।
- इस ग्रंथ में सूरदास जी के द्वारा लगभग 1 लाख से भी ज्यादा कृष्ण पद रचे गए थे लेकिन वर्तमान में इसमें केवल 8000 से 10000 पद ही हैं। वर्तमान युग में विद्वानों द्वारा इस ग्रंथ की बहुत ही प्रशंशा की गयी है।
- साहित्य-लहरी (Sahitya-Lahri):- साहित्य-लहरी सूरदास जी के द्वारा लिखित एक लघु ग्रंथ है जो श्रृंगार रस की प्रधानता से युक्त है।
- इस ग्रंथ में 118 पदों का संग्रह है, इस ग्रंथ में सूरदास जी के द्वारा अपने वंश के सम्बन्ध को पृथ्वीराजरासो के रचियता चंदरबरदाई के साथ दिखाया गया है।
- इस ग्रंथ में मुख्यतः नायिकाओं तथा अलंकारों की विवेचना करी गयी है, कुछ जगहों पर श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का भी वर्णन किया गया है।
- सूरसारावली (Sursaravali):- सूरसारावली एक “वृहद होली” गीत है जिसमे 1107 छंद है। यह ग्रंथ सूरसागर का एक सारभाग है, जो वर्तमान तक विवादास्पद है लेकिन यह सूरदास जी के द्वारा प्रमाणित कृति है। विद्वानों के द्वारा इसका रचना कल संवत 1602 ईस्वी निर्धारित किया गया है।
सूरदास जी की भाषा शैली
सूरदास जी के द्वारा अपने पदों में ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है और साथ में इनके सभी पद गीतात्मक रूप में हैं जिससे इन पदों में माधुर्य गुण है।
सूरदास जी ने सरल एवं प्रभाव शैली का भी प्रयोग किया है तथा इनका काव्य मुक्तक शैली पर भी आधारित है। सूरदास जी के द्वारा अपने काव्यों में इतनी प्रभावसाली भाषा का प्रयोग किया गया है जिससे की मनुष्य के ह्रदय एवं मस्तिष्क में आलोकिक आनंद का अनुभव होता है।
सूरदास जी ने जिस प्रकार से अपने शब्दों को व्यक्त किया है वह एक उच्च वात्सल्य रस का अनुभव कराती हैं तभी उन्हें वात्सल्य रस का सम्राट कहा जाता है।
हिंदी साहित्य में सूरदास जी का स्थान
सूरदास जी एक प्रतिभासंपन्न एवं महान् काव्यात्मक हिंदी साहित्य के कवि थे। सूरदास जी के द्वारा श्री कृष्ण जी के बाल जीवन एवं गोपियों संग प्रेम प्रसंग को इस प्रकार से वर्णन किया गया है की हिंदी साहित्य में कोई और कवि कभी भी नहीं कर सकता। हिंदी साहित्य में वात्सल्य रस के वर्णन करने वाले महान कवियों में सूरदास जी सर्वोच्च हैं।

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सूरदास जी का विवाह
समाज में सूरदास जी के विवाह को लेकर हमेशा से ही संदेह बना हुआ है, कहा जाता है की उन्होंने शादी की थी। उनकी पत्नी का नाम रत्नावली मन गया है लेकिन उनकी शादी को लेकर कोई भी साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं। संसारिक मोह माया त्यागने से पहले लोग मानते हैं की सूरदास जी पारिवारिक जीवन व्यतीत करते थे।
क्या सूरदास जी जन्म से अंधे थे ?
सूरदास जी के जन्म से अंधे होने के विषय में अभी भी कई प्रश्न उठे हुए हैं, सूरदास जी के द्वारा खुद को तो अँधा बताया है।
लेकिन जिस प्रकार से उन्होंने श्री कृष्ण जी के बाल स्वरूप की लीलाएं श्रृंगार रूपी गोपियाँ सौंदर्यपूर्ण राधा का सजीव चित्रण किया है यह बिना आँखों से देखे संभव नहीं हो सकता।
विद्वानों का यह मानना है की सूरदास जी जन्म से अंधे नहीं थे, बाद में किसी कारणवश वह अंधे हो गए थे या उन्होंने आत्मग्लानि वश अपने आप को अँधा बताया है।
सूरदास जी के अंधे होने से समन्धित किवदंतियां
सूरदास जी के बचपन का नाम मदनमोहन था, तथा वह प्रतिदिन नदिया के किनारे पर बैठ कर गीत लिखा करते थे। एक दिन नदी के किनारे पर बैठकर वह गीत लिख रहे थे तो उनके सामने पर एक लड़की आ गयी जिसने उनका मन मोह लिया।
वह लड़की रोजाना उसी नदी के किनारे आया करती थी, एक दिन वह नदी किनारे कपडे धो रही थी तभी सूरदास जी का ध्यान उनकी तरफ गया।
वह उस लड़की को एकटक देखे जा रहे थे तभी वह स्त्री मदन मोहन जी के पास गयी और कहा ; आप ही मदनमोहन जी हैं? तब सूरदास जी ने कहा जी हाँ में ही मदनमोहन हुँ।
में कविताएं तथा गीत लिखता हूँ, मेने आपके लिए भी कुछ गीत लिखे हैं। लेकिन जब बाद में मदन मोहन जी के पिता को यह बात पता चली तो वह सूरदास जी पर बहुत ही क्रोधीत हुए।
इसके बाद मदन मोहन जी ने अपना घर छोड़ दिया और वृन्दावन आकर रहने लगे। वहां भी सूरदास मंदिर में बैठकर भजन कीर्तन करते थे। लेकिन एक दिन वहां भी एक स्त्री मंदिर में आए और सूरदास जी का मन पुनः मोहित हो गया।
जब वह स्त्री घर जा रही थी तो सूरदास जी भी उनके पीछे पीछे चल दिए। जब उन्होंने स्त्री के घर के बहार दरवाजा खटखटाया तो स्त्री के पति द्वारा दरवाजा खोला गया।
जब स्त्री के पति द्वारा सूरदास को साधु वेश में देख कर अंदर ले गए तथा उनका आदर सत्कार किया। यह देखकर सूरदास जी को बहुत ही आत्मग्लानि हुई, जिससे सूरदास जी ने उन से दो गर्म जलती हुई सलाई मांगी और अपनी आँखों में डाल दी।
जिस कारण मदनमोहन जी अंधे हो गए यह देखकर उस दम्पति को बहुत ही अफ़सोस हुआ और उन्होंने महीनो तक सूरदास जी की सेवा की। इसके बाद सूरदास जी मथुरा आ गए और गुरु के दिशा निर्देशों का पालन करते हुए कृष्ण भक्ति में लीन हो गए।
सूरदास जी की मृत्यु
सूरदास जी के मृत्यु को लेकर विद्वानों की राय अलग अलग है, अलग अलग पुस्तकों में उनकी मृत्यु अलग अलग दर्शाई गयी है। लेकिन विद्वानों के द्वारा माना जाता है की सूरदास जी का निधन सन 1583 ईस्वी में पारसोली नामक गांव में हुआ।
सरदास जी के विषय में कुछ प्रश्न एवं उत्तर
सूरदास जी का जन्म कब हुआ ?
1478 ईस्वी में रुनकता नामक गांव में सूरदास जी का जन्म हुआ।
सूरदास जी की मृत्यु कब हुई ?
सूरदास जी का निधन सन 1583 ईस्वी में पारसोली नामक गांव में हुआ।
सूरदास जी द्वारा लिखे गए प्रमुख ग्रंथ कौन कौन से हैं ?
सूरदास जी द्वारा लिखे गए प्रमुख ग्रंथ सूरसागर, सूर सरावली, साहित्य लहरी हैं।
क्या सूरदास जी विवाहित थे ?
सूरदास जी के विवाह को लेकर हमेशा से ही संदेह बना हुआ है, कहा जाता है की उन्होंने शादी की थी। उनकी पत्नी का नाम रत्नावली मन गया है लेकिन उनकी शादी को लेकर कोई भी साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं